अब के गुरुजी

का बतावंव बेटा, मोरो टुरा हा तोरेच कक्छा या पढ़थे रे। फेर ओ हा पढ़ई-लिखई मा कक्छा म दूसरइया नंबर मा हे अउ तयं पहिली नंबर मा। त मोर कोनहो जेवनी हाथ के अंगूठा ला कटवा देतेंव, ते मोर टुरा हा कक्छा मा पहिली नंबर मा आ जातिस रे।
गुरु पूर्णिमा के दिन रिहिस। गुरु हा अपन जम्मो शिष्य मन ला दिक्छा देवत रिहिस अउ जम्मो सिस्य मन हा गुरुजी ला मुंह मांगा दक्छिना देवत रहय। अइसने मा एक झन शिस्य आघू मा आइस अऊ कहिस-
गुरूजी मय तोर शिस्य अंव अऊ तोर आघू मा मोर पूरा तन अरपन हे। कहिबे ते तुरते अपन मुंड़ी ल तो आघू म काट के दे देहूं।
गुरूजी- नहीं बेटा! अतेक लऊहा मर जाहूं कहिके झन सोंच रे।
शिस्य- काबर गुरूजी?
गुरूजी- काबर कि मय तोला भुगता-भुगता के मारहूं रे। तोर तन ला कुटी-कुटी मा कटवा-कटवा के मारहूं सोंचे हंव रे। अतेक लऊहा झन कर।
(शिस्य थोकन डर्रा जाथे अऊ अपन मुंड़ी ला निहार लेथे। तइसने मा)
गुरुजी- बेटा, सबले आघू तय अपन जेवनी हाथ के अंगूठा ला काट के दे।
शिस्य- नहीं गुरूजी, मोर जेवनी हाथ के अंगूठा ला झन मांग। येकर बदला मा अऊ कोनो दूसरा ला मांगले। मोर जेवनी हाथ के अंगूठा ला झन मांग। मय नई दे सकंव।
गुरुजी- (गुस्सा के) नहीं मोला चाही ते तोर जेवनी हाथ के अंगूठा अऊ कुछु दूसरा नई।
शिस्य- (मने मन मा खुश होके) का कहेस गुरुजी, आप मन ला चाही ते जेवनी हाथ के अंगूठा चाही अऊ कुछु नई चाही?
गुरुजी- (जोरदार गुस्सा के) नई चाही। तोर जेवनी हाथ के अंगूठा चाही अऊ कुछु नई।
शिस्य- (खुस होगे अऊ अपन जेवनी हाथ ला देखावत कहिथे) गुरूजी, मोर तो जेवनी हाथ के अंगूठा नई हे।
फेर आप मन हा परन घलो कर डरे हव कि जेवनी हाथ के अंगूठा के बदला अऊ कुछु नई लेवव। अब तो मय बोचक गेंव।
गुरूजी- (भारी गुस्सा होईस फेर अपन मन मा धीरज धर के पूछिस) कहां गे रे, तोर जेवनी हाथ के अंगूठा हा?
सिस्य- का बतावंव गुरूजी मोर किस्सा ला, का बतावंव।
हमर घर मा एक ठन कुकुर पोसे हन। जेला रोज बिहिनिया संझा एक पाकिट दूध अऊ एक पाकिट ब्रेड देथन।
शनिवार के दिन मय संझा कन तीन पाकिट दूध अऊ ब्रेड लेंव। रविवार के बिहिनिया, एक पाकिट दूध अऊ एक पाकिट ब्रेड।
सोमवार के दिन बिहिनिया ले बांचे दूध अऊ ब्रेड ला देहूं काहत रहेंव। वइसने मा सुनेव कि आज राजधानी बंद हे।
तुरतें घर तीर के किराना दुकान मा जा के पूछेंव। भईया दूध, ब्रेड हावय का?
दुकानवाला कहिस- ब्रेड हावय, दूध नई हे।
अब का करतेंव, दूध नई हे कहिस ते एक पाकिट ब्रेड ला लानेंव अऊ बांचे वाला एक पाकिट दूध मा पानी मिलाके कुकुर ला देवत रहेंव। तइसने मा कुकुर हा मोर जेवनी हाथ के अंगूठा ला चाब दिस।
अब मय थोरहे जानत रहेंव कि कुकुर हा मोला दुध मा पानी मिलावत देखे हावय। कुकुर हाथ ला चाबिस ते ऊही करा झल्ला के बईठगेंव।
मोला झल्ला के बइठे देख बाबूजी पूछिस- का होगे रे।
मय कहेंव- कुकुर चाब दिस।
बाबूजी कहिस- चल बेटा तुरते डॉक्टर कर जाबो अऊ बने इलाज ला कराबो। अउ दूनो झन चल देन सरकारी अस्पताल। सरकारी अस्पताल मा गेन, ते डॉक्टर नई रिहिस। बाबू मोला अस्पताल मा बईठादिस अऊ घर के तीर मा एक झन मंत्री जी रहिथे तेकर कर चल दिस।
(मंत्री जी, बाबूजी ला देखके)
मंत्री जी- कइसे आना होईस दाऊ जी। सब बने-बने हे ना?
बाबूजी- का बने-बने ला कहिबे भईया जी।
मोर टुरा ला कुकुर चाब दे हे, ते थोकन डॉक्टर ला सस्ता अऊ अच्छा इलाज करे बर कहि देतेंव कहिके आय रहेंव।
मंत्री जी- हव ठीक हे, मय तुरते कहि देथंव।
(मंत्रीजी पी.ए. डाहर ल देख के, पी.ए. डॉक्टर ले मोर संग बात करवा)
पी.ए.- हव सर।
(पी.ए. डॉक्टर ला फोन लगाथे। ट्रिन ट्रिन… ट्रिन ट्रिन… ट्रिन ट्रिन…।)
डॉक्टर- हलो…।
पी.ए.- हां डॉक्टर साहेब, मंत्री जी आप मन ले बात करना चाहत हे।
(पी.ए. फोन ल मंत्री जी ला दे देथे।)
मंत्री जी- हां डॉक्टर साहब!
डॉक्टर- हां सर।
मंत्रीजी- वो… आप मान के अस्पताल मा कुकुर चाबे वाला लइका गे हावय ओकर बने अच्छा अउ सस्ता इलाज ला कर देबे।
कोनो पइसा के कमती पड़ही तो हमर ले लेहू।
डॉक्टर- नई साहब, पइसा के जरूरत नई हे मय अच्छा अउ सस्ता इलाज कर देहूं।
मंत्री जी- ठीक हे डॉक्टर! धन्यवाद।
(अउ फोन ला मढ़ा देथे। येती अस्पताल मा)
डॉक्टर- कोन हरे, कुकुर चाबे वाला मरीज?
मरीज- मय हरंव साहेब।
डॉक्टर- कदे कर ला चाबे हे कुकुर हा?
मरीज- (जेवनी हाथ के अंगूठा ल देखावत) ये दे ला चाबे हे साहेब।
(डॉक्टर देख के ठीक हे कहिस अउअपन कैंची मा जेवनी हाथ के अंगूठा ला काट दिस।)
मरीज- आ… आ…! ये ददा गा।
बाबूजी- ये का कर देव डॉक्टर आप मन?
डॉक्टर- इलाज।
बाबूजी- ये कईसन इलाज आय?
डॉक्टर अच्छा- अच्छा अउ सस्ता।
बाबूजी- (ऐडी क़े रीस तरवा मा चढ़ाके) मय तोर शिकायत थाना मा करहूं।
डॉक्टर- जाबे ते जा थाना, मोला का हे। मंत्री जी किहिस अच्छा अऊ सस्ता इलाज करे बर। कुछु होही ते मंत्री जी कर जाहूं। जाबे ते जा थाना, मोला काय करे बर हे।
(ओतकी बेरा एक झन नर्स अइस अउ मोला पांच सूजी लगाईस)
(बाबू जी तुरते थाना गिस अउ जम्मो किस्सा ला बताइस थाना ले एक झन हवलदार अउ एक झन महिला पुलिस वाली आईस।)
महिला पूछिस- (पूछताछ बर) तय आस कुकुर चाबे वाला मरीज।
मरीज- हव साहब मय अंव।
महिला पुलिस- कइसे होईस तोर ये हाल?
मरीज- का बतावंव साहब! सरकारी अस्पताल के हाल। डॉक्टर मन के चाल। डॉक्टर आईस अउ मोर जेवनी हाथ के अंगूठा ला काट दिस।
(महिला पुलिस वाली मरीज के गोठ ला सुन के कहिस- हवलदार ये टुरा ला थाना मा ले जा के धांध दव, काबर कि ये जरूर नर्स संग छेड़खानी करे के कोसिस करसि होही। तभे डॉक्टर ऐकर अंगूठा ला काटिस हावय। हवलदार हव कहिके मोला थाना मा अउ कैदी मन संग धांध दिस।)
कैदी- कइसे भईया, काय गलती करे हस?
मय कहेंव- कुछु नहीं।
(वो कैदी हा अउबाकी कैदी मन ला बलाके मोला बदबदऊआ मारय अउ कहय- कुछु गलती नई करे हंव कथे।)
कैदी मन मोला मारत रिहिस तेला एक झन प्रहरी हा देखिस अउ आके छोड़ाईस अउ बड़े साहब ला कहिके मोला थाना ले भेज दिस।
मय बदबदऊआ मार मा सिहर गे रेहेंव अउ मोर कुरता घलो चिरागे रिहिस, एकोच कन रेंगे नई सकत रहेंव।
मय थोकन सुरताहूं कहिके अपन सांफी (गमछा) ला रद्दा के तीर मा जठायेंव अउ बइठगेंव। रद्दा मा जम्मो अवइया-जवइया मन मोला देखके मोर जठाये सांफी म चिल्हर पइसा ला फेंके।
मय गुणेंव, ये मन पइसा ला मोर कर काबर फेंकथे कहिके। फेर थोकिन देर बाद म जानेंव मैं ह मंगइया कस दिखत हंव।
अब मय मंगईया नो हंव कहिके बताहूं कहे बर पइसा फेंकइया मन ला कहेंव- ‘दाई ददा हो मय मंगईया नो हंव, भईया हो मय मंगईया नो हंव।’
‘मंगईया नो हस त का दानी अस जी, चिरहा कुरता वाले।’
मजकिहा मन के ठिठोली ला सुनेंव, ते मोर जीव करला गे अउ जोर-जोर ले गोहार पार के कहंव- ‘दाई-ददा हो मय मंगईया नो हंव, दीदी-भईया हो मय मंगईया नो हंव।’
मोला रद्दा मा गोहार पारत सुनके पागल अस्पताल के कम्पाउंडर मन मोटर धरके अईस अउ मोला मोटर मा चघा के पागल अस्पताल मा भर्ती कर दिस। मय दू महिना ले पागल अस्पताल मा पागल मन संग भर्ती रहेंव।
मोर बाबूजी सुनिस कि मय पागल अस्पताल मा भर्ती हंव ते तुरते आईस अउ डॉक्टर के हाथ-पांव जोड़के मोला घर लानिस।
गुरुजी- त कइसे रे बेटा, अतका तोर संग दुख बितिस अउ स्कूल मा खबर घलो नई करेस।
शिस्य- खबर करिस गुरूजी, खबर करिस बाबूजी हा। फेर प्राचार्य जी हा बाबूजी के गोठ ला मानबे नई करिस अउ बाबूजी ला कहिस- तय हर महिना के महिना मोला पांच सौ रुपया देबे। तब मय तोर टुरा के नाम ला नई काटंव अऊ रोज के रोज ओकर हाजरी चघावत जाहूं। त हर महिना के महिना पांच सौ रुपिया प्राचार्य ला देवय।
फेर गुरूजी, मोला ये समझ मा नई आवत हे कि तय काबर मोर जेवनी हाथ के अंगूठा ला दक्छिना मा मांगेस। कुछु दूसरा अंग ला काबर नई मांगेस।
गुरूजी- का बतावंव बेटा, मोरो टुरा हा तोरेच कक्छा मा पढ़थे रे। फेर ओ हा पढ़ई-लिखई मा कक्छा म दूसरइया नंबर मा हे अउ तय पहिली नंबर मा। त तोर कोनहो जेवनी हाथ के अंगूठा ला कटवा देतेंव, ते मोर टुरा हा कक्छा मा पहिली नंबर मा आ जातिस रे।
सिस्य- (बड़े विनय भाव मा) ठीक हे गुरुजी, ठीक हे। मय तो अपंग हंव अब तो आप मन खुश हावव ना। फेर हां गुरूजी, मय आप मन ला धर्मराज कस बरोबर ज्ञान के देवइया समझत रहेंव। फेर आज आप मन अपन असली रूप ला देखा देव।
फेर देखो गुरूजी, जब तक आप मन जइसे सुवारथ मा भरे गुरूजी रही, तब तक ये दुनिया के अज्ञानता दूर नई हो सकय। काबर कि गुरुजी तो केवल दिया कस अंजोर देवइया होथे, सच के रद्दा मा चले बर रद्दा देखइया होथे। चलना अउ जलना, तो शिस्य ला पड़थे।

भोलाराम साहू ‘दाऊ’
ग्राम व पोस्ट हसदा-2
थाना अभनपुर, जिला रायपुर

Related posts

6 Thoughts to “अब के गुरुजी”

  1. तोर लेख अब्बड़ सुग्घर लागिस . पीरा के अंत नई हे .

    1. Bholaram Sahu Dau

      dhanyawad chacha

  2. brijmohan agrawal

    lekh bahut badiya he

  3. amar agrawal

    badiya vyang he badhai ho

  4. moolchand nirmal

    तोर लेख अब्बड़ सुग्घर लागिस . पीरा के अंत नई हे .

  5. moolchand nirmal

    tor kahani abgarh sughar lagis ap man ke man me chhattisgarhi rachana sughar lagis

Comments are closed.